(इनफोकस - InFocus) महिला सुरक्षा पर उठते सवाल (Questions Arising On Women Safety)
सुर्खियों में क्यों?
सरकारों के तमाम दावों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध
थम नहीं रहे हैं. अभी हाल ही में, उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के साथ
गैंगरेप का मामला सामने आया है. इस पूरी घटना में सच्चाई क्या है …… कौन दोषी है ….
यह सब तो जांच के बाद ही सामने आएगा लेकिन इस पूरे मामले ने एक बार फिर से उन तमाम
दावों को खोखला साबित कर दिया जिसमें कहा जाता था कि हमारे देश में
महिलाएं सुरक्षित हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े?
महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों में हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या और आत्महत्या के लिए उकसाना आदि शामिल हैं. इसके अलावा, महिलाएं एसिड हमले, क्रूरता, हिंसा और अपहरण जैसे दूसरे अपराधों की भी शिकार होती हैं.
एनसीआरबी द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में
भारत में रोज़ाना दुष्कर्म के औसतन 87 मामले सामने आए. रिपोर्ट में बताया गया है कि
महिलाओं के खिलाफ अपराध के 405861 मामले
दर्ज किए गए। अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ हुए बलात्कार के मामलों में राजस्थान
554 मामलों के साथ शीर्ष पर है, जबकि 537 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान
पर है। अनुसूचित जनजाति की
महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के सबसे ज़्यादा मामले मध्य प्रदेश में दर्ज़ हुए जबकि
छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र इस मामले में क्रमशः दूसरे और तीसरे पायदान पर रहे।
महिलाओं के साथ हुए अपराधों में 2018 के मुकाबले 2019 में 7.3
फीसदी का इज़ाफा हुआ। साइबर अपराधों में 2019 में 63 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। 2019
में धोखाधड़ी के इरादे से दर्ज़ साइबर अपराधों की
संख्या सबसे ज़्यादा थी जबकि सेक्सुअल एक्सप्लोइटेशन के इरादे से दर्ज़ मामलों की
तादाद तकरीबन 5.1 फीसदी के आस-पास थी।
महिला सुरक्षा से जुड़े कौन-कौन से कानून मौजूद हैं?
महिला सुरक्षा को लेकर संसद समेत तमाम राज्य सरकारों ने कई
कानून बना रखे हैं. इसके अलावा, इन सरकारों द्वारा तमाम दूसरी तरह की कल्याण योजनाएं
भी चलाई जा रही हैं. इन क़ानूनों में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम
2005, दहेज निषेध अधिनियम 1961, स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिषेध अधिनियम 1986 और
अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 शामिल हैं. इसके अलावा, सती (रोकथाम)
अधिनियम, 1987, घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005, कार्यस्थल पर महिलाओं
के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 और आपराधिक कानून (संशोधन)
अधिनियम 2013 जैसे दूसरे कानून भी महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराध पर लगाम लगाने
के लिए मौजूद हैं.
क्यों हो रहे हैं यह अपराध?
भारत में बीते एक दशक में बलात्कार के जितने भी मामले दर्ज हुए
हैं उनमें केवल 12 से 20 फीसदी मामलों में सुनवाई पूरी हो पायी। बलात्कार के दर्ज
मामलों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन सजा की दर
नहीं बढ़ रही है। दुष्कर्म और फिर हत्या के मामलों में न्याय में देरी होने के कारण
ही गुनहगारों में सजा का भय खत्म होता जा रहा है।
इसके अलावा, दुनिया भर के समाजशास्त्री, राजनेता, कानूनविद और
प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि पॉर्नोग्राफी बढ़ते यौन अपराधों का एक बड़ा कारण है।
टेलीकॉम कंपनियों द्वारा सस्ती दरों पर उपलब्ध
कराए जा रहे डाटा का 80 फीसदी उपयोग मनोरंजन व अश्लील सामग्री देखने में हो रहा है,
जबकि इसे सूचनात्मक ज्ञान बढ़ाने का आधार बताया गया था।
साथ ही, पुरुषवादी मानसिकता महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के
पीछे बड़ा कारण है. देश भर के कम उम्र के लड़कों को आक्रामक और प्रभावशाली व्यवहार
करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस बारे
में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यानी UNFPA का कहना है कि किस तरह ऐसी ज़हरीली
मर्दानगी की भावनाएं युवाओं के ज़हन में बहुत छोटी उम्र से ही बैठा दी जाती हैं।
उन्हें ऐसी सामाजिक व्यवस्था का
आदी बनाया जाता है, जहां पुरुष ताक़तवर और नियंत्रण रखने वाला होता है और उन्हें यह
विश्वास दिलाया जाता है कि लड़कियों और महिलाओं के प्रति प्रभुत्व का व्यवहार करना
ही उनकी मर्दानगी है।
इन तमाम कारणों के अलावा जो सबसे बड़ा कारण महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के लिए उत्तरदाई है वह है प्रशासनिक उदासीनता. निर्भया कोष के आवंटन के संबंध में सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक आवंटित धनराशि में से 11 राज्यों ने एक भी रुपया खर्च नहीं किया। इन राज्यों में महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा के अलावा दमन और दीव शामिल हैं। उत्तर प्रदेश ने निर्भया फंड के तहत आवंटित 119 करोड़ रुपए में से सिर्फ 3.93 करोड़ रुपए खर्च किए। संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से जुड़ी योजनाओं के लिये 37 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महिला हेल्पलाइन, वन स्टाप सेंटर स्कीम सहित तमाम योजनाओं के लिये धन आवंटित किया गया था। दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, दादरा नगर हवेली और गोवा जैसे राज्यों को महिला हेल्पलाइन के लिए दिए गए पैसे जस के तस पड़े हैं। वन स्टाप स्कीम के तहत बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल ने एक पैसा खर्च नहीं किया।
आगे क्या किया जा सकता है?
हालांकि सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कानून बना रखे हैं लेकिन इसके बावजूद कुछ ऐसे सुझाव हैं जो अमल में लाए जा सकते हैं. सबसे पहले तो महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तीन ई (Es) पर अधिकाधिक जोर दिए जाने की जरूरत हैः
- लड़कों को लैंगिक बराबरी के बारे में शिक्षा (Educating Boys on Gender Equality),
- लड़कियों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाना (Empowering Girls Both Economically and Socially ) और
- उन क़ानूनों का पालन किया जाना जो मौजूद हैं पर इस्तेमाल में नहीं लाए जाते (Enforcing the Laws That Exist and are not Implemented)।
- महिला सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को प्रयास करना चाहिए कि मोबाइल कंपनियां सभी मोबाइल फोन में अब पैनिक बटन अनिवार्य करें ताकि महिलाएं इस बटन को दबाकर तुरन्त मदद मांग सकें. साथ ही, ये ध्यान रखा जाए कि सही समय पर उन तक मदद पहुंचे। हिमाचल प्रदेश और नागालैंड राज्यों में ये पहले ही शुरू हो चुका है।
- सरकार हर शहर में ऐसे स्थानों की पहचान करे जहां अपराध ज्यादा होते हैं। इन स्थानों पर सीसीटीवी की निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए। प्रत्येक शहरों में स्व-चालित नम्बर प्लेट रीडिंग (एएनपीआर) और ड्रोन आधारित निगरानी भी करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- महिला पुलिसकर्मियों के द्वारा गश्त बढ़ाई जानी चाहिए। हर पुलिस स्टेशन में महिला सहायता डेस्क की स्थापना की जाए, इस पर एक प्रशिक्षित काउंसलर की सुविधा भी हो। फिलहाल जो आशा ज्योति केन्द्र या भरोसा केन्द्र चल रहे हैं उनमें विस्तार किया जाए।
- महिला सुरक्षा और लैंगिक संवेदनशीलता पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम कराए जाएं।
- प्रत्येक ऑफिस में एक यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाना उस ऑफ़िस के मालिक का कर्तव्य है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा-निर्देश के मुताबिक यह भी जरूरी है कि समिति का नेतृत्व एक महिला करे और सदस्यों के तौर पर उसमें पचास फीसदी महिलाएं ही शामिल हों।
- वास्तव में महिला सुरक्षा के लिए खुद महिला को भी सक्षम होना होगा। उसे हिम्मत, वीरता और साहस जैसे गुणों को अपना आभूषण बनाना होगा।
- बलात्कार की घटनाओं में कुछ हद तक कमी धीरे-धीरे लाई जा सकती है यदि हम महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ पुरुष मानवीयकरण के लक्ष्य को भी सामने रखें। घर में पिता, पत्नी और बेटी का, बेटा, मां और बहन का सम्मान करे। बाहर किसी भी स्त्री को कोई भी पुरुष इंसान की तरह मानकर सम्मान करें। शायद यह महिलाओं को देवतुल्य बताने से ज्यादा बेहतर होगा.